उम्मीदों की फसल लगाई थी जिसने मुश्क़िलों की बेमौसम बारिश ने बर्बाद कर दिया उसे ... लेकर बिखरी फसल और बिखरे हुए सपने दुख भरी दास्ताँ बेचारा सुनाये किसे... दर बदर भटक रहा है कुछ खोजने शायद थोड़ा हौसला चाहिये उसे... नीला आसमाँ भी लगने लगा है काला दिखने डर नहीं लगता था अंधेरे का कभी जिसे... अगर आये कभी ऐसा शक़्स तुमसे मिलने बस थोड़ी उम्मीद दे देना उसे ©diaryofprit उम्मीदों की फसल... #diaryofprit