आज भारत मां भी अश्रु बहाई होगी, अंतर्मन में चिल्लाई होगी। जो आयु में इतना वृद्ध है, कैसे लाठी खाई होगी? अगर दोष था तो न्यायालय जाते, न्याय हेतु अर्जी लगवाते। स्वयं न्यायधीश बन प्रहार किया, ये द्वेषाग्नि किसने जलाई होगी? संदेह मात्र में मृत्यु बांट दी, क्या सच में दया न आई होगी? वे साधू थे संन्यासी थे, त्याग का व्रत ले बैठे थे, ये सोच भी लिया था तुमने कैसे, कि उन्होंने वस्तु चुराई होगी? है मानवता के ठेकेदारों, अमानव बन क्या तुमको लाज न आई होगी? ये प्रश्न अब उठता ही रहेगा। जब तक न निष्पक्ष सुनवाई होगी। ये गांठ बांध लो अंतर्मन में, जो शस्त्र उठा अब रण में, तो अंतिम यही लड़ाई होगी। #व्यथित #द्रवित #justiceforsadhu #yqbaba #yqdidi