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किसान सूरज उगते ही मधुबन में जैसे कलियां छा जाती

किसान

सूरज उगते ही मधुबन में
जैसे कलियां छा जाती है
वैसे किसान हल बैल लेकर
खेत खलिहान पहुंच जाते है
पहर दोपहर काम करके 
थक हार जाते है
तब भोजन पानी को वह
तरस,,,,,, खाते है
नयन पल-पल 
घर की ओर घूमाते है
तब कहीं जाकर
भोजन उनके आते है

सर से पांव तक उनका
धूल कण से भर जाते है
घाम पसीना से लथपथ
कहीं का ना वह रह पाते हैं
फिर भी नहीं वह
काम छोड़ कहीं जाते है
कठिन परिश्रम कर
दो पैसे कमाते है
तब कहीं जाकर
भोजन कर पाते हैं

सुबह से शाम तक
चट्टानों सा डट जाते है
सीधा साधा सरल
तंबू अपना घर बनाते हैं
जलती मिट्टी को वह
गले से लगाते हैं
उसे शोध कर कहीं
उसमें फसल उगाते हैं
तब कहीं जाकर
भोजन उनको मिल पाते हैं
किसान

सूरज उगते ही मधुबन में
जैसे कलियां छा जाती है
वैसे किसान हल बैल लेकर
खेत खलिहान पहुंच जाते है
पहर दोपहर काम करके 
थक हार जाते है
तब भोजन पानी को वह
तरस,,,,,, खाते है
नयन पल-पल 
घर की ओर घूमाते है
तब कहीं जाकर
भोजन उनके आते है

सर से पांव तक उनका
धूल कण से भर जाते है
घाम पसीना से लथपथ
कहीं का ना वह रह पाते हैं
फिर भी नहीं वह
काम छोड़ कहीं जाते है
कठिन परिश्रम कर
दो पैसे कमाते है
तब कहीं जाकर
भोजन कर पाते हैं

सुबह से शाम तक
चट्टानों सा डट जाते है
सीधा साधा सरल
तंबू अपना घर बनाते हैं
जलती मिट्टी को वह
गले से लगाते हैं
उसे शोध कर कहीं
उसमें फसल उगाते हैं
तब कहीं जाकर
भोजन उनको मिल पाते हैं
laxmanswami4231

laxman swami

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