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इस मतलबी से दौर में, मुझे राह दिखाने का शुक्रिया।

इस मतलबी से दौर में, मुझे राह दिखाने का शुक्रिया।
 बेहद लंबे, मुश्किल भरे थे रास्ते आसां बनाने का शुक्रिया।।

मेरी छोटी-छोटी गलतियां, तेरी नसीहतों से सुधर गई। 
कभी भुला में पहचान तो, "मैं क्या हूं" ये बताने का शुक्रिया ।।

चारदीवारी में था सिमटा हुआ, अंजान जगह, हर शख्स अजनबी।
 मुझे पतझड़ से निकाल कर, कुछ हसीन मंज़र दिखाने खा शुक्रिया।।

माना वो इक दौर था, खेल-खेल में बढ़ गई रंजिशे । 
हार-जीत तो विधान है, कहके गल लगाने का शुक्रिया।।

मैं खामखां परेशान था, जब टूट कर दिल बिखर गया। 
तब गम को साझा करने को, दो घूंट पिलाने का शुक्रिया।।

जब रूत थी इम्तिहानों की, परीक्षा या कुछ करके दिखाने की
 क्या कुछ हो सकता है इक रात में, वो जादू ही तो था, 
ये जादू सिखाने का शुक्रिया।।

©shiva jha...
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