लुकाछिपी खेलती हो क्यूं, कहीं लुकी छिपी के ईस खेल मे , तुम मुझे कहीं खो ना बैठो! देखने को भी तरसों ताउम्र मुझे, भटको तुम दर बर दर, मुझे ढूंढने को ताउम्र, और क्या पता मै कहीं ना मिलुं! और तुम तरस जाओ ऐसे, मुझे देखने को, जैसे चांद को देखने के लिए, अमावस्या की रात! ©¶पागल¡शायर¡शुभ¶ लुकाछिपी खेलती हो क्यूं, कहीं लुकी छिपी के ईस खेल मे , तुम मुझे कहीं खो ना बैठो! देखने को भी तरसों ताउम्र मुझे , भटको तुम दर बर दर , मुझे ढूंढने को ताउम्र, और क्या पता मै कहीं ना मिलुं!