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खिचड़ी परोसता मैं कभी कभार तहरी साधारण शब्दों में

खिचड़ी परोसता मैं कभी कभार तहरी 
साधारण शब्दों में सरल बातें नहीं गहरी
शब्दों की माला बनाता बहुरंग सतलहरी
कसता न कायदे छंद चाह न पाऊँ दस्तुरी 
डोरी तान गाता बेताल मृदंग संग कजरी 
मिले अनंत उमंग संग बैठे जो एक लहरी 
लय मिले संग संगत बैठे जो बिछा दरी ! #खिचड़ी
खिचड़ी परोसता मैं कभी कभार तहरी 
साधारण शब्दों में सरल बातें नहीं गहरी
शब्दों की माला बनाता बहुरंग सतलहरी
कसता न कायदे छंद चाह न पाऊँ दस्तुरी 
डोरी तान गाता बेताल मृदंग संग कजरी 
मिले अनंत उमंग संग बैठे जो एक लहरी 
लय मिले संग संगत बैठे जो बिछा दरी ! #खिचड़ी