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चुनाव -एक व्यंग्य चुनाव होते है, नेतागिरी के पाँव

चुनाव -एक व्यंग्य

चुनाव होते है,
नेतागिरी के पाँव होते है,
बयानों के ताव होते है,
जीत हार के भाव होते है,
नेताओं के ढुकाव होते है,
चमचों के लगाव होते है!

फिर-
वही घोड़े, वही मैदान होते है,
वही शहर, वही गाँव होते है,
वही नेता, वही स्वाभाव होते है,
वही मांगे, वही सुझाव होते है,
वही बातें, वही घुमाव होते है !

फिर-
अमीर, गरीबों के तनाव होते है,
भेद भाव के रिसाव होते है,
ताजा घपलों के घाव होते है,
नेताओं के नये दांव होते है !
और फिर-
चुनाव होते है !

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि'

©Anand Dadhich #Chunav #Loksabha2024 #kaviananddadhich #poetananddadhich #चुनाव #PoemOnElections
चुनाव -एक व्यंग्य

चुनाव होते है,
नेतागिरी के पाँव होते है,
बयानों के ताव होते है,
जीत हार के भाव होते है,
नेताओं के ढुकाव होते है,
चमचों के लगाव होते है!

फिर-
वही घोड़े, वही मैदान होते है,
वही शहर, वही गाँव होते है,
वही नेता, वही स्वाभाव होते है,
वही मांगे, वही सुझाव होते है,
वही बातें, वही घुमाव होते है !

फिर-
अमीर, गरीबों के तनाव होते है,
भेद भाव के रिसाव होते है,
ताजा घपलों के घाव होते है,
नेताओं के नये दांव होते है !
और फिर-
चुनाव होते है !

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि'

©Anand Dadhich #Chunav #Loksabha2024 #kaviananddadhich #poetananddadhich #चुनाव #PoemOnElections