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मुझे सब लोग अच्छे ही मिले हैं। कमी बस एक मुझमें ही

मुझे सब लोग अच्छे ही मिले हैं।
कमी बस एक मुझमें ही पले हैं।
नहीं क्यों बन सका सबकी तरह मैं-
यही दिन रात दिल को भी गिले हैं।

अकेला  मैं  हज़ारों  काफ़िले  हैं।
कि बढ़ती दूरियों के सिलसिले हैं।
छुड़ा  कर  हाथ  बैठे  हैं  किनारे-
चले जो साथ बन कर काफ़िले हैं।

नयन  में  जो  मेरे  सपने  पले  हैं।
अभागे  सब  दुखाग्नि  में जले  हैं।
तलाशूँ मैं कहाँ मंज़िल को अपने-
हुए  ओझल  मेरे  हर  मरहले  हैं।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki #सफ़रनामा
मुझे सब लोग अच्छे ही मिले हैं।
कमी बस एक मुझमें ही पले हैं।
नहीं क्यों बन सका सबकी तरह मैं-
यही दिन रात दिल को भी गिले हैं।

अकेला  मैं  हज़ारों  काफ़िले  हैं।
कि बढ़ती दूरियों के सिलसिले हैं।
छुड़ा  कर  हाथ  बैठे  हैं  किनारे-
चले जो साथ बन कर काफ़िले हैं।

नयन  में  जो  मेरे  सपने  पले  हैं।
अभागे  सब  दुखाग्नि  में जले  हैं।
तलाशूँ मैं कहाँ मंज़िल को अपने-
हुए  ओझल  मेरे  हर  मरहले  हैं।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki #सफ़रनामा