घायल पड़ा शेर है, फिर भी जज़्बा कमाल का है जेल में सड़ी गली रोटियाँ है फिर भी आज़ादी की बिंगुल बजा रहा है पानी को तरसा है पर खून में उफ़ान है ऐसे शहीदों को हम देशवासियो का नमन बारम्बार है। फांसी के फंदे पे लटक रहा है, फिर भी मुस्कुरा रहा है इंक़लाम जिंदाबाद के नारे लगा रहा है हर नुक्कड़ पे देशभक्ति की ज्वाला जला रहा है ऐसे शहीदों को हम देशवासियो का नमन बारम्बार है। कलम हो चुका घर का खून, फिर भी माँ न रोयी है उजड़ी नहीं है कोख़ मेरी वो तो धरती माँ को भायी है आँखों में आंसूं नहीं वीरता की बज रही झंकार है ऐसे शहीदों को हम देशवासियो का नमन बारम्बार है। आओ शहीदों को श्रदांजलि अर्पित करते है और ऐसी वीर माताओ को वंदन करते है महक उठी मिटी, धरती यह बलिदान की है ऐसे शहीदों को हम देशवासियो का नमन बारम्बार है। #स्वतंत्र दिवस कविता #poem on Independence day