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जब निर्वासित अंधकार कम्पित स्वर अपना त्यागेगा जब च

जब निर्वासित अंधकार कम्पित स्वर अपना त्यागेगा
जब चाँद उजाला सूरज से अपने हिस्से का माँगेगा
जब रात्रि!व्योम के वक्षस्थल पर निज अभिलाषा अंकितकर
संशय विहीन सो जाएगी श्यामल कुंतलदल फैलाकर
जब कामिनियों के लतापत्र कमनीय सुगन्धि सुलेपितकर
भर देंगे मादकता सुरम्य उस रात्रि अधर पर मध्य प्रहर
जब जूही, बेला, हरसिंगार कुहूकेंगे उस अँगड़ाई पर
विचरेंगे अपने पंख सजा जब जुगुनू के से रात्रि-चर
जब तारों के ये दीप स्वयं अपने प्रकाश में डूबेंगे
जब लोग विभाती निंदियारे दृग-दृष्टि-जगतरत मूँदेंगे
जब शून्य धरा की मादकता पर अंग-अंग बिछ-बिछ जाएगा
हे प्रिये!  हमारे अंतरतम का हर अंतर मिट जाएगा
मेरा पौरुष तेरी गरिमा दोनों गुरुता पा जाएँगे
ये बाह्य आवरण त्याग युगल अभ्यांतर तक जाएँगे
उस प्रहर हमारे होने का पर्याय बदल सा जाएगा
तुम मृदुपलकावली खोलोगी निहार सदय खिल आएगा
इन लाल कपोलों की शोभा में सूरज आभा पाएगा
इस रात्रि मिलन का गीत प्रिये! युग-युग प्रभात दुहरायेगा
उस सुराभित अंचल की छाया प्रकाश कहाँ कब पाएगा




 #toyou#yqlifeanddeath#yqlove#yqthemoonandthenight#yqmusic
जब निर्वासित अंधकार कम्पित स्वर अपना त्यागेगा
जब चाँद उजाला सूरज से अपने हिस्से का माँगेगा
जब रात्रि!व्योम के वक्षस्थल पर निज अभिलाषा अंकितकर
संशय विहीन सो जाएगी श्यामल कुंतलदल फैलाकर
जब कामिनियों के लतापत्र कमनीय सुगन्धि सुलेपितकर
भर देंगे मादकता सुरम्य उस रात्रि अधर पर मध्य प्रहर
जब जूही, बेला, हरसिंगार कुहूकेंगे उस अँगड़ाई पर
विचरेंगे अपने पंख सजा जब जुगुनू के से रात्रि-चर
जब तारों के ये दीप स्वयं अपने प्रकाश में डूबेंगे
जब लोग विभाती निंदियारे दृग-दृष्टि-जगतरत मूँदेंगे
जब शून्य धरा की मादकता पर अंग-अंग बिछ-बिछ जाएगा
हे प्रिये!  हमारे अंतरतम का हर अंतर मिट जाएगा
मेरा पौरुष तेरी गरिमा दोनों गुरुता पा जाएँगे
ये बाह्य आवरण त्याग युगल अभ्यांतर तक जाएँगे
उस प्रहर हमारे होने का पर्याय बदल सा जाएगा
तुम मृदुपलकावली खोलोगी निहार सदय खिल आएगा
इन लाल कपोलों की शोभा में सूरज आभा पाएगा
इस रात्रि मिलन का गीत प्रिये! युग-युग प्रभात दुहरायेगा
उस सुराभित अंचल की छाया प्रकाश कहाँ कब पाएगा




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