कुछ शब्द उकेरे, रेत पे, फिर मिटाये, फिर जुबां पे चुपके से आये, कहीं दूर जब ख़ामोशी गूंजे, मन मंदिर में प्रीत जलाये, विरहा के तम को , थोड़ा कम कर जाए, उस पल झूम के नाचूँ, जिस दिन आँगन, प्रियतम आये, सखी सहेली भूल गई सब, अब मुझको न कुछ भाए, विरहन से जोगन भई, दुःख ने आ के भाग जगाए, कुछ नहीं तो प्रियतम ने, यादों के तोहफ़े थमाए।।। कुछ शब्द उकेरे, रेत पे, फिर मिटाये, फिर जुबां पे चुपके से आये, कहीं दूर जब ख़ामोशी गूंजे, मन मंदिर में प्रीत जलाये, विरहा के तम को , थोड़ा कम कर जाए,