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अभी शाम ए ग़म में उजाले बहोत हैं। अभी चश्म ए लब पर

अभी शाम ए ग़म में उजाले बहोत हैं।
अभी चश्म ए लब पर  रिसाले बहोत हैं।

तुम्हें नाज़ है अपनी शोहरत पे, होगा
मगर हम ने आँसू निकाले बहोत हैं।

मझे फिक्र है अपने दुश्मन की वरना
हमे दोस्तों ने सम्भाले बहोत हैं।

।वकील अहमद रज़ा।

©waqil ahmad raza #lamppost
अभी शाम ए ग़म में उजाले बहोत हैं।
अभी चश्म ए लब पर  रिसाले बहोत हैं।

तुम्हें नाज़ है अपनी शोहरत पे, होगा
मगर हम ने आँसू निकाले बहोत हैं।

मझे फिक्र है अपने दुश्मन की वरना
हमे दोस्तों ने सम्भाले बहोत हैं।

।वकील अहमद रज़ा।

©waqil ahmad raza #lamppost