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दिल आमादा था ज़ब्त पे, मैं रो नहीं सका तुम मिले थे

दिल आमादा था ज़ब्त पे, मैं रो नहीं सका
तुम मिले थे ऐसे वक़्त पे, मैं रो नहीं सका

मैं रो नहीं सकता या फिर रोना फ़िजूल था
था बैठा ग़मों के तख़्त पे, मैं रो नहीं सका

वो बगावत किये हुए हैं , पत्तों के टूटने पर
यहाँ, टूटते हुए  दरख़्त पे, मैं रो नहीं सका

बिक जाते हैं हाकिम भी,अमीरों का दौर है   
सो अर्जियों के निरस्त पे, मैं रो नहीं सका

©इंदर भोले नाथ
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