क्या करूं उस ज़माने में रहकर मैं, जहाँ अपने गैरों को पीछे छोड़ चुके है न पहचानने में, क्या करूं उस ज़माने से निभाकर मैं, जो देर नहीं लगते दुसरो की मेहनत मिटाने में, क्या करूँ उस ज़माने को स्वीकारके भी मैं, जो खुश नहीं रह सकते दुसरो के सुख में, क्या करूँ उस ज़माने में रहकर मैं । । ©Gitesh Grover #seventh #Nojoto #Shayari #Zamana #quotes #गीतekनज़राना #CityEvening गीत ek नज़राना...