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छोड़ तेरे क़दमों के निशांँ वक्त चलता रहता है। जो ए

छोड़ तेरे क़दमों के निशांँ वक्त चलता रहता है।
जो एक बार चला जाता वो फ़िर कहांँ मिलता है।

भटकता रहता है मेरा मन वक्त के रेत पर ढूँढ़ने जब जाता है।
तेरा वजूद तो नहीं तेरे क़दमों के निशांँ मिल जाता है।
 
साहिल पर हम ढूंँढ़ते तेरे क़दमों के निशांँ।
यादों के पन्नों पर भूली तेरी मेरी दास्ताँ।

ख़ुद–ब–ख़ुद वो  चलते रहते क़दम मेरे कहीं ठहरते नहीं।
तेरे प्यार के निशांँ को मिटने हरगिज़ हम देते नहीं।

आपके के क़दमों के निशांँ दिल के रेत से मिटते नहीं।
ये इश्क़ का मंज़र यूँही चलता रहता कारवांँ रुकता नहीं।

 

 ♥️ Challenge-977 #collabwithकोराकाग़ज़

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊

♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा।

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।
छोड़ तेरे क़दमों के निशांँ वक्त चलता रहता है।
जो एक बार चला जाता वो फ़िर कहांँ मिलता है।

भटकता रहता है मेरा मन वक्त के रेत पर ढूँढ़ने जब जाता है।
तेरा वजूद तो नहीं तेरे क़दमों के निशांँ मिल जाता है।
 
साहिल पर हम ढूंँढ़ते तेरे क़दमों के निशांँ।
यादों के पन्नों पर भूली तेरी मेरी दास्ताँ।

ख़ुद–ब–ख़ुद वो  चलते रहते क़दम मेरे कहीं ठहरते नहीं।
तेरे प्यार के निशांँ को मिटने हरगिज़ हम देते नहीं।

आपके के क़दमों के निशांँ दिल के रेत से मिटते नहीं।
ये इश्क़ का मंज़र यूँही चलता रहता कारवांँ रुकता नहीं।

 

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