"खाली जेबें" जेबें खाली थीं पर मन भरे थे दिन बचपन के थे कच्चे मिट्टी से बने पर सोने से खरे थे भूख भूल जाते थे खेल खेलने में और जीने में वहीं आज भी हैं बस उम्र थोड़ी सी बढ़ गयी हैं स्वयं को छुपाने की आदत जो पड़ गयी हैं दूसरे क्या सोचेंगे इस पर कुछ ज्यादा ही सोचते हो कहीं ना कहीं दूसरों के लिए दूसरे तुम भी तो हो सबसे पहले स्वयं से मिलो उस बचपन को आखिरी समय तक संभाल कर मासूमियत से बचा कर रखो - प्रेरित त्यागी #Childhood #Poetry #memory #Money #Time #Hindi #poems #Kids