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तुम्हें जरूरत ही कहां है किसी साज सिंगार की तुम जो

तुम्हें जरूरत ही कहां है किसी साज सिंगार की
तुम जो मुस्कुरा दो तो अंबर का चांद भी जलन से जल जाए।
 आपकी आंखें मानो हो अनंत नदियां नशे की
और खोलो जुल्फें जो तुम अदिति का कन कन महक जाए।
सुंदरता तो है तुम्हारी छवि अंतर आत्मा की शांति की
"मुसाफिर,"जो लगा लो काजल आंखों में तो स्वर्ग की सारी अप्सराएं भी दासी तुम्हारी बन जाए।

©Musafir ke ehsaas
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