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पत्र तेरी वो बल खाती लिखावट और स्याही की महक हर

पत्र 

तेरी वो बल खाती लिखावट और स्याही की महक 
हर शब्द पे तेरे हाथों का स्पर्श और इश्क़ की चहक 

आज फिर याद आयी मुझे उसकी जब मैं एक धूल खाती अलमारी में अपनी कुछ पुरानी किताबें ढूंढ रहा था | यूं फिर एक किताब दिखी मुझे जिसमे कुछ उभार सा था, जब मैंने खोली वो तो एक पन्ना रखा था उसमें जो कुछ मैला सा दिख रहा था पर महक अब भी बरकरार थी | वो पन्ना मुड़ा हुआ था और पीछे की तरफ एक दिल की आकृति बनी हुई थी, जिसे लोग इश्क़ का प्रतिक मानते है | उसमें गुलाबी रंग भरा हुआ था जो हमारे इश्क़ की तरह भद्दा पड़ गया था पर आकृति अभी भी पहले जैसे ही खूबसूरत थी | जब खोला मैंने उसे तो कुछ धूल सी जमी थी उसमें, जो मैंने एक फूंक मारकर तेरे मेरे ख्वाबों की तरह उड़ा दी | उसके कोने अब कुछ मुड़ से गए थे, मैंने खोला तो एक तरफ तेरा और एक तरफ मेरा नाम ऐसे लिखा हुआ था जैसे हमारे बीच दूरियां |स्याही थोड़ी फैल गयी थी पर लेखनी अभी भी पहले जितनी ही उम्दा थी, उसमें कुछ वादे भी थे जो शायद पुरे ना हो सके | हर बार की तरह तूने इस पत्र में भी मेरे नाम के अक्षरों में कुछ गलती की हुई थी पर इस बार वो स्याही के फैलनें से सही हो गयी थी | कुछ पहेलियाँ थी उसमें जिनमें मैं अभी भी उलझा हुआ था, जिन्हें सुलझाने की लिए मैं आज फिर उस गुलमोहर के पेड़ के निचे चला गया | जहा हम कभी मिला करते थे कुछ डालियाँ सुख गयी थी उसकी पर अहसास अब भी वही था मैंने यूं लोगो से नज़रे चुराकर, उस पत्र को पेड़ की जड़ में पत्तों से छिपाकर रख दिया जैसे कभी पहले रखा करते थे और तू पढ़ने आया करती थी | 

पर मुझे पता है तू अब पढ़ने नहीं आएगी ना 

- DEVANSH RAJPOOT #khubsuratalfaz #poetry #loveletter
पत्र 

तेरी वो बल खाती लिखावट और स्याही की महक 
हर शब्द पे तेरे हाथों का स्पर्श और इश्क़ की चहक 

आज फिर याद आयी मुझे उसकी जब मैं एक धूल खाती अलमारी में अपनी कुछ पुरानी किताबें ढूंढ रहा था | यूं फिर एक किताब दिखी मुझे जिसमे कुछ उभार सा था, जब मैंने खोली वो तो एक पन्ना रखा था उसमें जो कुछ मैला सा दिख रहा था पर महक अब भी बरकरार थी | वो पन्ना मुड़ा हुआ था और पीछे की तरफ एक दिल की आकृति बनी हुई थी, जिसे लोग इश्क़ का प्रतिक मानते है | उसमें गुलाबी रंग भरा हुआ था जो हमारे इश्क़ की तरह भद्दा पड़ गया था पर आकृति अभी भी पहले जैसे ही खूबसूरत थी | जब खोला मैंने उसे तो कुछ धूल सी जमी थी उसमें, जो मैंने एक फूंक मारकर तेरे मेरे ख्वाबों की तरह उड़ा दी | उसके कोने अब कुछ मुड़ से गए थे, मैंने खोला तो एक तरफ तेरा और एक तरफ मेरा नाम ऐसे लिखा हुआ था जैसे हमारे बीच दूरियां |स्याही थोड़ी फैल गयी थी पर लेखनी अभी भी पहले जितनी ही उम्दा थी, उसमें कुछ वादे भी थे जो शायद पुरे ना हो सके | हर बार की तरह तूने इस पत्र में भी मेरे नाम के अक्षरों में कुछ गलती की हुई थी पर इस बार वो स्याही के फैलनें से सही हो गयी थी | कुछ पहेलियाँ थी उसमें जिनमें मैं अभी भी उलझा हुआ था, जिन्हें सुलझाने की लिए मैं आज फिर उस गुलमोहर के पेड़ के निचे चला गया | जहा हम कभी मिला करते थे कुछ डालियाँ सुख गयी थी उसकी पर अहसास अब भी वही था मैंने यूं लोगो से नज़रे चुराकर, उस पत्र को पेड़ की जड़ में पत्तों से छिपाकर रख दिया जैसे कभी पहले रखा करते थे और तू पढ़ने आया करती थी | 

पर मुझे पता है तू अब पढ़ने नहीं आएगी ना 

- DEVANSH RAJPOOT #khubsuratalfaz #poetry #loveletter