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ये द्वेश ये जलन, अपनों का ही क़ातिल है ये क्रोध मे

ये द्वेश ये जलन, अपनों का ही क़ातिल है
ये क्रोध में, ख़ुद को ही मारने को आतुर है
कश्तियाँ डूब जाती है, ये झूठे अहंकार में
सिवाए दरार के कुछ नहीं बचता, इन रिश्तों की दीवार में

देख कमज़ोर न हो पाए, ये विश्वास की डोर
नींव मजबूती पर हो, लगाना सच्चाई का ज़ोर
टूट कर बिखर जाते हैं रिश्ते, अक्सर गलतफहमी के शिकार में
सिवाए दरार के कुछ नहीं बचता, इन रिश्तों की दीवार में

हृदय की कठोरता नहीं थोड़ी शालीनता दिखाया कर
कभी सबकुछ भूलकर अपनों को गले लगाया कर
क्यों ले जा रहा है तू अपने भविष्य को अंधकार में
सिवाए दरार के कुछ नहीं बचता, इन रिश्तों की दीवार में 🎀 Challenge-208 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है।

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। आप अपने अनुसार लिख सकते हैं। कोई शब्द सीमा नहीं है।
ये द्वेश ये जलन, अपनों का ही क़ातिल है
ये क्रोध में, ख़ुद को ही मारने को आतुर है
कश्तियाँ डूब जाती है, ये झूठे अहंकार में
सिवाए दरार के कुछ नहीं बचता, इन रिश्तों की दीवार में

देख कमज़ोर न हो पाए, ये विश्वास की डोर
नींव मजबूती पर हो, लगाना सच्चाई का ज़ोर
टूट कर बिखर जाते हैं रिश्ते, अक्सर गलतफहमी के शिकार में
सिवाए दरार के कुछ नहीं बचता, इन रिश्तों की दीवार में

हृदय की कठोरता नहीं थोड़ी शालीनता दिखाया कर
कभी सबकुछ भूलकर अपनों को गले लगाया कर
क्यों ले जा रहा है तू अपने भविष्य को अंधकार में
सिवाए दरार के कुछ नहीं बचता, इन रिश्तों की दीवार में 🎀 Challenge-208 #collabwithकोराकाग़ज़

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