आए मुहब्बत में सनम आख़िर यहाँ मैं दर-ब-दर हूँ आप के ख़ातिर यहाँ जो तुम नहीं हो याद आया अब ख़ुदा मुद्दत तलक मैं भी रहा काफ़िर यहाँ जो मुस्करा के मिल रहा हूँ जा-ब-जा होता ग़म-ए-पिन्हाँ नहीं ज़ाहिर यहाँ बार-ए-ख़ुदा से हुक्म हो तब भी नहीं वो लौट कर ना आएगा अब फ़िर यहाँ रोज़-ए-क़यामत या ख़ुदा ऐलान हो हों बेवफ़ा-ओ-बे-इमाँ हाज़िर यहाँ माना कि हम थे प्यार में नौसिख्खिए पर आप तो थे इश्क़ के माहिर यहाँ की ज़ख्म कैसा आपने उसको दिया वो उम्र भर रोता रहा शाइर यहाँ रामा सुनो वो मस्जिदों को तोड़ कर नादाँ बनाते हैं तिरा मंदिर यहाँ 'सैफ़ी' परों को काट कर वो कह रहे आज़ाद हमने कर दिया ताइर यहाँ