इक इबादत की तरह, हम तो प्यार करते हैं। हो न रूसवा 'वो' कहीं, बार--बार डरते हैं।। वो तमन्ना है--तआर्रूफ़ है--तजु़र्बा 'अनुपम'। वो करे -- न भी करे, हम ऐतबार करते हैं।। : 'अनुपम' त्रिपाठी @मुक्त कंठ अम्बर !