पालघर व्यथा : शर पर लगा था डंडा या कोई खपरैल लहू से लथपथ था शरीर , महीना था अप्रैल| ** भीड़ ** न तो ये इंसान है, न ही कोई आदमी| न तो इनका धर्म है, न ही कोई जाति भी || झुण्ड में आकरके ये शेर खुद को बता रहे| अरे ! गीदड़ो की भीड़ है , ये इंसानियत मिटा रहे || हम खड़े है जिस धरा पर , है अदालत कानून भी| पर जहां झुण्ड है भेड़ियों का , है वहां पर खून भी || वाइरस ने तो बस जान ली, लोगो को चेताया है हुई धरा जब बेगानी, तो यही आलम आया है|| पर इन भेड़ियों के झुण्ड ने तो नोच खाया जान को| हर दिलो में कर खौफ पैदा ,इंसानियत को मिटाया है|| न खौफ इनको है न किसी का ? न ही डर कुछ का शता रहा .. बस भेड़ जैसी चाल में ही पूरा है काफिला जा रहा.... .न नियम कानून है. न ही कायदे कद्र है इंसानियत के नाम पर , सब के अंदर सब्र है || ऐसे तूफां से संभल कर हम हुए रूबरू कई बार| हर दफा इंसानो से ही हुई इंसानियत तारतार|| अब इंसाफ होगा या राजनीती ? जो समय था वो मिट गया इस धरा में भीड़ का एक नया कालम लिखा गया Rashmi Dwivedi 😔#moblynching #crowdedpeople #justiceForHinduSadhu #wewantJustic #footsteps