संशोधन तो महासमुंदों में भी सम्भव है, यही गति.. ठहराव की अनुकरणी बनती है, या यूं कहें कि ठहराव, गति के मध्य का स्तम्भ। सृष्टियां जिसके आधार से गति करती है और ठहरती है वह भी इन्हीं संशोधनों का राग है। पूर्णता, पूर्णतया इसी के अनुक्रम में साकार होती है जो परब्रम्ह के शांताकार होने की बस झलक है। वह तो अपने "एक रूप" मात्र से विराट और सूक्ष्म, दोनों हो जाता है उनके रूपों की न कोई थाह है और न कोई शिखर। ~अमित महोदय"आर्यावर्ती" ©Amit Mahodaya #हिंदी #विचार #आध्यात्मिक #यात्रा #चेतना #ध्यान #अमित #महोदय #अमित_महोदय