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आज सुबह उठने से पहले शायद मैं कहीं तैर रहा था...हा

आज सुबह उठने से पहले शायद मैं कहीं तैर रहा था...हां ऐसा ही लगा की मैं तैर रहा था पर दरअसल मैं बह रहा था...

इतना सुनकर अनुमान ना लगा लेना कि हम पुरुष सिर्फ स्त्रियों की आँखों में ही बह सकते हैं, वो भी सही है पर सदा ऐसा नहीं है...

...........................Rest in Caption........................
 आज सुबह उठने से पहले शायद मैं कहीं तैर रहा था...हां ऐसा ही लगा की मैं तैर रहा था पर दरअसल मैं बह रहा था...
इतना सुनकर अनुमान ना लगा लेना कि हम पुरुष सिर्फ स्त्रियों की आँखों में ही बह सकते हैं, वो भी सही है पर सदा ऐसा नहीं है...
यद्यपि ये भी स्त्रीलिंग ही है तो ये मत कहियेगा कि men will be men, ये भी सही है पर सदा ऐसा नहीं है...

दरअसल आज मैं सतलुज नदी के साथ बह गया...अब सतलुज ही क्यों, गंगा क्यों नहीं यमुना क्यों नहीं...यमुना के किनारे तो कृष्ण भी खेले थे  फिर वहां क्यों नहीं...पर मैं भी अजीब पागल हूँ न, औरों से अलग हूं, मुझे वही अच्छा लगता है जो बहुत कम लोगों को पसंद होता है या किसी को पसंद नहीं...

सतलुज के साथ इसलिए गया कि शायद अमर शहीद भगत सिंह से मेरा प्रेम और इसी सतलुज में मिली उनकी शहीदी का रंग या शायद अपने अंदर समेटे हुए तीन तीन देशों चीन~पाक~हिन्द की सभ्यताओं का संगम लिए हुए है ये सरिता या शायद हिन्द~पाक को बाँटने का निशान के रूप में पहचाने जाने का दर्द समाहित किये शतद्रु या शायद चनाब नदी से मिल कर पनजन नदी का श्रृंगार कर हिन्द सागर से मिलन की ख़ुशी प्रदर्शित करती है ये...
आज सुबह उठने से पहले शायद मैं कहीं तैर रहा था...हां ऐसा ही लगा की मैं तैर रहा था पर दरअसल मैं बह रहा था...

इतना सुनकर अनुमान ना लगा लेना कि हम पुरुष सिर्फ स्त्रियों की आँखों में ही बह सकते हैं, वो भी सही है पर सदा ऐसा नहीं है...

...........................Rest in Caption........................
 आज सुबह उठने से पहले शायद मैं कहीं तैर रहा था...हां ऐसा ही लगा की मैं तैर रहा था पर दरअसल मैं बह रहा था...
इतना सुनकर अनुमान ना लगा लेना कि हम पुरुष सिर्फ स्त्रियों की आँखों में ही बह सकते हैं, वो भी सही है पर सदा ऐसा नहीं है...
यद्यपि ये भी स्त्रीलिंग ही है तो ये मत कहियेगा कि men will be men, ये भी सही है पर सदा ऐसा नहीं है...

दरअसल आज मैं सतलुज नदी के साथ बह गया...अब सतलुज ही क्यों, गंगा क्यों नहीं यमुना क्यों नहीं...यमुना के किनारे तो कृष्ण भी खेले थे  फिर वहां क्यों नहीं...पर मैं भी अजीब पागल हूँ न, औरों से अलग हूं, मुझे वही अच्छा लगता है जो बहुत कम लोगों को पसंद होता है या किसी को पसंद नहीं...

सतलुज के साथ इसलिए गया कि शायद अमर शहीद भगत सिंह से मेरा प्रेम और इसी सतलुज में मिली उनकी शहीदी का रंग या शायद अपने अंदर समेटे हुए तीन तीन देशों चीन~पाक~हिन्द की सभ्यताओं का संगम लिए हुए है ये सरिता या शायद हिन्द~पाक को बाँटने का निशान के रूप में पहचाने जाने का दर्द समाहित किये शतद्रु या शायद चनाब नदी से मिल कर पनजन नदी का श्रृंगार कर हिन्द सागर से मिलन की ख़ुशी प्रदर्शित करती है ये...