रंगोली में भिगो के चोली मेरी करता सीना -जोरी कहूँ !क्या तुझसे ए सहेली मनमीत रूठा था कबसे ऐसे मुँह फेर के कैसे मनाऊं उसे मैं, मेरी पड़ी ये वीरान हवेली कोई तो कहो उसे कहके मुँहबोली उसके बिना ये खेली जाये न होली सुन तो अरदास कुछ ओ प्यारी हठेली वो जमुना किनारे बैठ करे अठखेली कोई मना के लाओ उसे अब खेली न जाये ये रंगों की होली आके थामे अगर वो मेरी हथेली कभी मैं छोड़ू ना उसकी बनु चमेली कैसे अब कहूँ उससे मैं पलके कबकी भीगी हो रही पर खेली जाये न ये रंगों की होली रंगों की होली#दिल के रिश्ते