‘यादों की नागरिकता’ यादों की नागरिकता में सबसे पहले आता बचपन। यादों की धुंध में ढूंढती हूं मैं अपना बचपन क्या उम्र, क्या मासूमियत क्या था लड़कपन मन में बस एक ही ख्वाइश खेलते रहें हम हरदम मां की डांट का कंपन फिर पापा का निष्पक्ष समर्थन भाई बहन का प्यार फिर कभी आपस में होती थी तकरार गुल्ली डंडा या सतिल्लो खेलो मारो पीटो और भागो जीने के थे अनोखे रंग मान जाए बचपन बस एक चॉकलेट पर आज भी याद आती है बचपन और लंगोटिया दोस्ती