रोज़ एक ख़्वाब टूटे बिखरे मिले, गुलिस्तां बियाबान-ए-ख़ार हो गया, ज़र्द पत्ते लिपटते रहे पाँव से, हौंसला रखते-रखते तबाह हो गया।। "बियाबान-ए-ख़ार" - सुनसान,जंगल "ज़र्द" - पीला