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ग़मो को आईना दिखला रहा हूँ मुसलसल चोट दिल पे खा रह

ग़मो को आईना दिखला रहा हूँ 
मुसलसल चोट दिल पे खा रहा हूँ !

ज़मीं और आसमाँ मिलते नहीं हैं
मैं इससे कब भला घबरा रहा हूँ?

गया जो वक्त वो वापस न होगा
मैं उल्टे पाँव वापस आ रहा हूँ !

वो जिनमे अब तलक उलझे हुए थे
उन्ही ज़ुल्फ़ों को मैं सुलझा रहा हूँ !

जो बाते खुद नही समझा अभी तक
वही बातें उन्हें समझा रहा हूँ !

मिलेंगे वो मुझे इक दिन यकीनन
यही कह कर मैं दिल बहला रहा हूँ !

लगी हैं ठोकरें रस्ते में मुझको
मगर रुकता नहीं चलता रहा हूँ ! 🤓#Good morning जी🤓☕☕💕🌹🌹☕🙏🙏☕
मेरे दिल के क़रीब यह ग़ज़ल मेरे एकमात्र प्रिय @कवि डॉ विष्णु  सक्सेना जी की है ।
जिसे मैंने 16 मार्च 2016 को संकलित किया था ।
आज सुबह फेसबुक मेमोरीज में दिखाई दिया तो आपसे साझा कर रहा हूँ ।
जय श्री कृष्ण 🙏🌹🤓🤓🤓🙏☕🌹🌹🤓🤓🤓💕💕
:
#पंछी
#पाठक
ग़मो को आईना दिखला रहा हूँ 
मुसलसल चोट दिल पे खा रहा हूँ !

ज़मीं और आसमाँ मिलते नहीं हैं
मैं इससे कब भला घबरा रहा हूँ?

गया जो वक्त वो वापस न होगा
मैं उल्टे पाँव वापस आ रहा हूँ !

वो जिनमे अब तलक उलझे हुए थे
उन्ही ज़ुल्फ़ों को मैं सुलझा रहा हूँ !

जो बाते खुद नही समझा अभी तक
वही बातें उन्हें समझा रहा हूँ !

मिलेंगे वो मुझे इक दिन यकीनन
यही कह कर मैं दिल बहला रहा हूँ !

लगी हैं ठोकरें रस्ते में मुझको
मगर रुकता नहीं चलता रहा हूँ ! 🤓#Good morning जी🤓☕☕💕🌹🌹☕🙏🙏☕
मेरे दिल के क़रीब यह ग़ज़ल मेरे एकमात्र प्रिय @कवि डॉ विष्णु  सक्सेना जी की है ।
जिसे मैंने 16 मार्च 2016 को संकलित किया था ।
आज सुबह फेसबुक मेमोरीज में दिखाई दिया तो आपसे साझा कर रहा हूँ ।
जय श्री कृष्ण 🙏🌹🤓🤓🤓🙏☕🌹🌹🤓🤓🤓💕💕
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#पंछी
#पाठक