मोहब्बत को नजर लग जाये ना ज़ालिम ज़माने का, लगा रखी है कुंडी हमने दिल के कैदखाने का, गुजरना,घूरना,तकना सदा ही एक खिड़की को , दिखा सकता है तुमको रास्ता भी जेलखाने का, बड़े मायूस होगे टूटा दिल जब साथ लाओगे, जन्म भर की तड़प,बेचैनियां ज्युँ पागलखाने का, न दौड़ो तेज संकरा रास्ता है ये बहुत नाजुक, सँभलना भी बहुत मुश्क़िल है ख़तरा जान जाने का, जो डूबे हैं निकलने का तरीक़ा भी उन्हें आता, ये पुल है दो दिलों के बीच केवल आने जाने का, है जिनका शौक हरदम खेलना ख़तरों से है "गुंजन", उन्हें मालूम है दरिया के भी उस पार जाने का, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई,तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #ये पुल है आने जाने का#