मैं जिंदगी से :- गिरती संभलती बेफिक्र चलती। परवाह नहीं तुझे मेरी एक भी पल की। बड़ी बेवफा है क्या कहूं दास्तां तेरे सितम की। जिंदगी छोड़ मेरा दामन जरूरत नहीं अब मुझे तेरे रहम की। जिंदगी मुझसे :- क्यों बेवजह वे तुक की बातों पे लड़े यूं। तुझे पता नहीं किनारे से भवर को बड़े तू। ना करने दूंगी तुझको हालातों से सौदा। जचता नहीं है तू यू बेबस सा रोता । न कर इन विचारों से अपनी मती का शोषण। अपने मनकी पावन धरा को कर नए स्वपनों से रोपण । अनजान तुझको क्या कुछ बताना है। नए बदलते हालातों में ढलना सिखाना है। आ बाढ़ आगे अपनी मंजिल को पा ले। हूं साथ तेरे मुझको अपनी बना ले।। ©Rishik tripathi जिन्दगी #Rose #जिन्दगी