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सम्मान और आदर (चिंतन) ******************* कृपा अन

सम्मान और आदर (चिंतन)
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कृपा अनुशीर्षक में पढ़ें व्यक्ति का चरित्र एक वृक्ष के समान है, और मान सम्मान इसकी शाखाएं। सम्मान पाने के लिए सामान देना पड़ता है।
समाज में सम्मान इंसान के व्यक्तित्व व्यवहार, इंसानियत और उसके कर्मों का होता है।
सम्मान और आदर (चिंतन)
एक गांव में गरीब परिवार था। मुश्किल से दो वक्त का गुजारा होता था। परिवार में पांच सदस्य थे वैष्णव (पती) और कविता(पत्नी), सोनम (बेटी),‌आदर्श(बेटा) और उनके बूढ़े माताजी। पैसे की किल्लत की वजह से सिर्फ आदर्श को ही वह पढ़ा सकें, परंतु  सोनम पढ़ नहीं पाए वह घर में आदर्श की किताबों से पढ़ती थी और ज्ञान हासिल करती थी। आदर्श डॉक्टर बना, नाम हुआ, पूरे गांव में डॉक्टर साहब के नाम से जाना जाने लगा, उसके सम्मान के हकदार उसके माता-पिता थे परंतु आदर्श के अंदर शिष्टाचार की कमी थी। एक ही घर में पले बढ़े परंतु स्वभाव में अंतर था।
सोनम स्कूल तो ना जा सकी परंतु बड़ों का मान-सम्मान आदर्श अधिकार जैसे सारे गुण उसके अंदर थे। सारे सबक किताबों में नहीं सीखे जाते कुछ सबक जिंदगी खुद सिखाती है। आदर्श ने पढ़ लिख कर नाम तो कमा लिया सम्मान भी पा लिया परंतु शिष्टाचार की कमी की वजह से आदर ना पाया। उधर सोनम तेज दिमाग होने की खातिर पढ़ाई भी की, मीठी वाणी से लोगों का मन भी जीता, स्वभाव से लोगों के दिलों में बसने भी लगी और आचरण की वजह से सम्मान भी पाया।
आत्मिक चिंतन की बात है सम्मान पाने के लिए सम्मान देना पड़ता है और वाणी में मधुरता होनी बहुत जरूरी है। जिंदगी में आदर और सम्मान हमेशा करना चाहिए तभी खुद की भी गरिमा बनी रहती है।
#कोराकाग़ज़ 
#collabwithकोराकाग़ज़
सम्मान और आदर (चिंतन)
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कृपा अनुशीर्षक में पढ़ें व्यक्ति का चरित्र एक वृक्ष के समान है, और मान सम्मान इसकी शाखाएं। सम्मान पाने के लिए सामान देना पड़ता है।
समाज में सम्मान इंसान के व्यक्तित्व व्यवहार, इंसानियत और उसके कर्मों का होता है।
सम्मान और आदर (चिंतन)
एक गांव में गरीब परिवार था। मुश्किल से दो वक्त का गुजारा होता था। परिवार में पांच सदस्य थे वैष्णव (पती) और कविता(पत्नी), सोनम (बेटी),‌आदर्श(बेटा) और उनके बूढ़े माताजी। पैसे की किल्लत की वजह से सिर्फ आदर्श को ही वह पढ़ा सकें, परंतु  सोनम पढ़ नहीं पाए वह घर में आदर्श की किताबों से पढ़ती थी और ज्ञान हासिल करती थी। आदर्श डॉक्टर बना, नाम हुआ, पूरे गांव में डॉक्टर साहब के नाम से जाना जाने लगा, उसके सम्मान के हकदार उसके माता-पिता थे परंतु आदर्श के अंदर शिष्टाचार की कमी थी। एक ही घर में पले बढ़े परंतु स्वभाव में अंतर था।
सोनम स्कूल तो ना जा सकी परंतु बड़ों का मान-सम्मान आदर्श अधिकार जैसे सारे गुण उसके अंदर थे। सारे सबक किताबों में नहीं सीखे जाते कुछ सबक जिंदगी खुद सिखाती है। आदर्श ने पढ़ लिख कर नाम तो कमा लिया सम्मान भी पा लिया परंतु शिष्टाचार की कमी की वजह से आदर ना पाया। उधर सोनम तेज दिमाग होने की खातिर पढ़ाई भी की, मीठी वाणी से लोगों का मन भी जीता, स्वभाव से लोगों के दिलों में बसने भी लगी और आचरण की वजह से सम्मान भी पाया।
आत्मिक चिंतन की बात है सम्मान पाने के लिए सम्मान देना पड़ता है और वाणी में मधुरता होनी बहुत जरूरी है। जिंदगी में आदर और सम्मान हमेशा करना चाहिए तभी खुद की भी गरिमा बनी रहती है।
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