टूटा हुआ भरोसा लेकर, चलें जा रहें हैं। गैरों से नहीं गिला, यहां अपने ही आज़मा रहे हैं। मंसूबा क्या है उनका, कुछ कह नहीं सकते। खून का वास्ता दिए, ज़लील किए जा रहें हैं। शायद यही वो दौर है जहां बेगानों के साथ साथ कभी कभी अपनों से भी बचकर रहना पड़ता है। क्योंकि सिर्फ़ उन्हें ही दिल के हर कमज़ोर नब्ज़ का अंदाज़ा होता है। OPEN FOR COLLAB✨ #ATटूटाहुआभरोसा • A Challenge by Aesthetic Thoughts! ♥️ CHECK OUT OUR PINNED POST! 😁🏆 Collab with your soulful words.✨