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अगर मिले साथ किसी का, ना अंधेरे का डर, ना सवेरे का

अगर मिले साथ किसी का,
ना अंधेरे का डर,
ना सवेरे का डर।
कितनी हुं बेताब मिलन को,
बता नहीं सकती,
समझ में नहीं आना किसी को,
मेरे मन का डर।
रहती है चिंता अक्सर मुझे, 
रहती है सताती, 
रहता हरदम डर।
अकेली कहीं छोड़ ना जाना, 
खाने को आयेगा घर।
कितना प्यार करुं तुम से,
ये महसूस करके तो देख।
मर जाऊंगी बिन तेरे संगरूरवी,
 फुल से घास करके तो देख।

©Sarbjit sangrurvi अगर मिले साथ किसी का,
ना अंधेरे का डर,
ना सवेरे का डर।
कितनी हुं बेताब मिलन को,
बता नहीं सकती,
समझ में नहीं आना किसी को,
मेरे मन का डर।
रहती है चिंता अक्सर मुझे,
अगर मिले साथ किसी का,
ना अंधेरे का डर,
ना सवेरे का डर।
कितनी हुं बेताब मिलन को,
बता नहीं सकती,
समझ में नहीं आना किसी को,
मेरे मन का डर।
रहती है चिंता अक्सर मुझे, 
रहती है सताती, 
रहता हरदम डर।
अकेली कहीं छोड़ ना जाना, 
खाने को आयेगा घर।
कितना प्यार करुं तुम से,
ये महसूस करके तो देख।
मर जाऊंगी बिन तेरे संगरूरवी,
 फुल से घास करके तो देख।

©Sarbjit sangrurvi अगर मिले साथ किसी का,
ना अंधेरे का डर,
ना सवेरे का डर।
कितनी हुं बेताब मिलन को,
बता नहीं सकती,
समझ में नहीं आना किसी को,
मेरे मन का डर।
रहती है चिंता अक्सर मुझे,