सुनो मैं ईश्वर को प्रेम लिखता हूँ क्योंकि वह भाव है देने का उसी तरह जीवन दिया है बिना कुछ लिए दिया है ना ! इसे स्वीकारते हो या नही हाँ तो कुछ भी छीना नही अब तुम्हें प्रेम से ही इसे विस्तार देना है ! कुछ को विशेष मानकर स्वयं जोड़ लेता है आशाएं अपने लिये कुछ उम्मीदें भी महत्वकांक्षाऐं लेकर पड़ता है बंधन में और दोष प्रेम पर रख स्वयं को निर्दोष साबित करता है ! 😊💕#good night💕😊 : प्रेम प्रदीप्ति हृदय में हो तो क्या भूख क्या प्यास ? जठराग्नि को बल ही नही मधुरता के आभास से तृप्त स्वयं की सुध रहती ही कब है !