हो सकता है मैं मसरूफ हो जाऊ वक्त के साथ मगरूर हो जाऊ करीब से निकल जाऊ बिन बोले ही मैं इस कदर भी बदल जाऊ लेकिन..... खुद पर ज़रा भरोसा करना इसे भी मेरा इश्क़ ही समझना इश्क़ हमेशा इश्क ही रहेगा इतना सा तुम याद रखना रो दूंगी दूर जाकर गर सामने न मुस्कुरा पाई ख़ुद से भी ना मिल पाऊंगी कभी जो तुझसे ना मिल पाई जिस्म कहीं भी हो क्या फर्क पड़ता है जहन में जिंदा रखा है ये तो लाज़िम है बस इतना सा तुम समझ लेना मेरी सांसें जो अब तक चल रही है इसे इस बात का सबूत समझना कि तू मुझमें अभी भी बाकी है तू मुझमें अभी बाकी है... ©तृप्ति #लाज़िम_है