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दहक रहा मन होलिका संंग, अभिशाप यह दूरी है, लौ से

दहक रहा मन होलिका संंग,
अभिशाप यह दूरी है, 
लौ से बाती मिल न पाये, 
हाय कैसी मजबूरी है, 
मन गगन बन बरसना चाहे, 
कहाँ  मेरी हमजोली है, 
आ जाओ हर रंग निखर जाये, 
तुम बिन बेरंग होली है!!

©Kumar Pranesh
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