शहर का ये सन्नाटा जाने कब तक रहेगा, दंगों का दौर है, खून जाने कब तक बहेगा!! आजादी के मायने बदलने लगे है अब लोगो के, एक पल की खुशी के लिए दर्द कब तक सहेगा!! ईर्ष्या , मोह, छल, कपट, वासना से दूर कोई नहीं, कंस से दुराचारी को डर से कृष्ण कब तक कहेगा!! मातम होता है मुल्कों में, जब हमले होते है बेवजह, इंसानियत का ये चोला, जाने यूँही कब तक ढ़हेगा!! This post is again an inspiration for me which I got from my loving bro Siddharth (मानस). Today he posted a sher which was posted as a poem later on. I just tried to present his thoughts in my she'r. Thanks for your encouragement Siddharth Dadhich..