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विधा:-कहानी(प्रेरक) शीर्षक:-"आत्मविश्वास की जीत"

विधा:-कहानी(प्रेरक)
शीर्षक:-"आत्मविश्वास की जीत"


सम्पूर्ण कहानी अनुशीर्षक में पढ़े। विधा:-कहानी(प्रेरक)
शीर्षक:-आत्मविश्वास की जीत

रमेश 39 वर्षीय एक प्रौढ़ हैं।वह वाराणसी के निकट एक गाँव मे अपने परिवार के साथ रहता था,परिवार में पत्नी, दो बच्चे थे।सभी की कार्यशैली तय थी।बच्चे रोज स्कूल जाते हैं व पत्नी एक समझदार गृहणी हैं सब की नियमित कार्यशैली थी। रमेश पास के होटल में काम  करता है।रमेश बहुत ही ईमानदार, नेक व्यक्तित्व वाला व्यक्ति है। वह अपने कार्य के प्रति सजग होता हैं कभी भी किसी प्रकार की चालाकी नही करता। फिर अचानक एक दिन उसके सिर में दर्द हुआ जो कि बहुत ही जानलेवा बीमारी थी। डॉक्टर के पास जाने के बाद रमेश की पत्नी व रमेश को बताया कि आपको ब्रेन ट्यूमर हैं, यह सुन रमेश के पैरों तले की जमीन खिसक जाती है परन्तु रमेश की पत्नी काफ़ी सहनशील व समझदार थी, वह इस बात को बड़े ही धैर्य से अपने मनमस्तिष्क में ठान लेती हैं कि कुछ भी हो जाये मैं रमेश को इस बीमारी का शिकार नहीं होने दूँगी तो वह बड़े ही विश्वास से रमेश के हाथ पर हाथ रख कर कहती हैं औऱ एक पौधे की तरफ़ इशारा करती हैं कि जब तक यह पौधा हरा हैं तब तक आपको कुछ नही होगा। बस ऐसे ही महीने बीतते गये रमेश की पत्नी अपनी समझ से रोज रमेश को वह पौधा दिखाती औऱ रमेश का विश्वास बढ़ाती औऱ वह डॉक्टर के माध्यम से भी बेहतर दवाइयों का इंतजाम करवाती है,ऐसे करते करते साल के साल बीतते गए ।रमेश पौधा देख कर रोज विश्वास बढ़ाता औऱ ऐसे करते करते वह भयंकर बीमारी को मात दे जाता हैं। जब वह अपना विश्वास जीत लेता हैं औऱ बिल्कुल ठीक हो जाता हैं । परन्तु इसके पीछे के रहस्य से रमेश अनभिज्ञ होता है कि जिस पौधे को वह रोज देख अपनी बीमारी को मात देता है वह पौधा मात्र एक कृत्रिम पौधा है। यहाँ रमेश की पत्नी की सूझ व सोच रमेश का विश्वास बढ़ा देती हैं और रमेश कैंसर जैसी बीमारी को मात दे देता है।

सीख:-कभी भी अपना विश्वास विकट परिस्थितियों में नही खोना चाहिये व धैर्य सोच से काम लेना चाहिये।क्योंकि संसार में मानव  श्रेष्ठ है क्योंकि उसके पास सोच हैं।उसका प्रयोग करना चाहिये।

निशा कमवाल(स्वरचित मौलिक रचना)
विधा:-कहानी(प्रेरक)
शीर्षक:-"आत्मविश्वास की जीत"


सम्पूर्ण कहानी अनुशीर्षक में पढ़े। विधा:-कहानी(प्रेरक)
शीर्षक:-आत्मविश्वास की जीत

रमेश 39 वर्षीय एक प्रौढ़ हैं।वह वाराणसी के निकट एक गाँव मे अपने परिवार के साथ रहता था,परिवार में पत्नी, दो बच्चे थे।सभी की कार्यशैली तय थी।बच्चे रोज स्कूल जाते हैं व पत्नी एक समझदार गृहणी हैं सब की नियमित कार्यशैली थी। रमेश पास के होटल में काम  करता है।रमेश बहुत ही ईमानदार, नेक व्यक्तित्व वाला व्यक्ति है। वह अपने कार्य के प्रति सजग होता हैं कभी भी किसी प्रकार की चालाकी नही करता। फिर अचानक एक दिन उसके सिर में दर्द हुआ जो कि बहुत ही जानलेवा बीमारी थी। डॉक्टर के पास जाने के बाद रमेश की पत्नी व रमेश को बताया कि आपको ब्रेन ट्यूमर हैं, यह सुन रमेश के पैरों तले की जमीन खिसक जाती है परन्तु रमेश की पत्नी काफ़ी सहनशील व समझदार थी, वह इस बात को बड़े ही धैर्य से अपने मनमस्तिष्क में ठान लेती हैं कि कुछ भी हो जाये मैं रमेश को इस बीमारी का शिकार नहीं होने दूँगी तो वह बड़े ही विश्वास से रमेश के हाथ पर हाथ रख कर कहती हैं औऱ एक पौधे की तरफ़ इशारा करती हैं कि जब तक यह पौधा हरा हैं तब तक आपको कुछ नही होगा। बस ऐसे ही महीने बीतते गये रमेश की पत्नी अपनी समझ से रोज रमेश को वह पौधा दिखाती औऱ रमेश का विश्वास बढ़ाती औऱ वह डॉक्टर के माध्यम से भी बेहतर दवाइयों का इंतजाम करवाती है,ऐसे करते करते साल के साल बीतते गए ।रमेश पौधा देख कर रोज विश्वास बढ़ाता औऱ ऐसे करते करते वह भयंकर बीमारी को मात दे जाता हैं। जब वह अपना विश्वास जीत लेता हैं औऱ बिल्कुल ठीक हो जाता हैं । परन्तु इसके पीछे के रहस्य से रमेश अनभिज्ञ होता है कि जिस पौधे को वह रोज देख अपनी बीमारी को मात देता है वह पौधा मात्र एक कृत्रिम पौधा है। यहाँ रमेश की पत्नी की सूझ व सोच रमेश का विश्वास बढ़ा देती हैं और रमेश कैंसर जैसी बीमारी को मात दे देता है।

सीख:-कभी भी अपना विश्वास विकट परिस्थितियों में नही खोना चाहिये व धैर्य सोच से काम लेना चाहिये।क्योंकि संसार में मानव  श्रेष्ठ है क्योंकि उसके पास सोच हैं।उसका प्रयोग करना चाहिये।

निशा कमवाल(स्वरचित मौलिक रचना)