।। ओ३म् ।। तदेतत् सत्यं यथा सुदीप्तात् पावकाद् विस्फुलिङ्गाः सहस्रशः प्रभवन्ते सरूपाः। तथाक्षराद् विविधाः सोम्य भावाः प्रजायन्ते तत्र चैवापि यन्ति ॥ हे सौम्य! यह है 'वह' पदार्थों का 'सत्यतत्त्व' जिस प्रकार सुदीप्त अग्नि से सहस्रों स्फुर्लिंग उत्पन्न होते हैं तथा वे सभी अग्नि के समान रूप वाले होते हैं, उसी प्रकार अक्षर-तत्त्व से अनेकानेक भावों का (सम्भूतियों का) उद्भव होता है तथा उसी में वे सब चले जाते हैं। This is That, the Truth of things: as from one highkindled fire thousands of different sparks are born and all have the same form of fire, so, O fair son, from the immutable manifold becomings are born and even into that they depart. ( मुंडकोपनिषद १.३.१ ) #।। ओ३म् ।। तदेतत् सत्यं यथा सुदीप्तात् पावकाद् विस्फुलिङ्गाः सहस्रशः प्रभवन्ते सरूपाः। तथाक्षराद् विविधाः सोम्य भावाः प्रजायन्ते तत्र चैवापि यन्ति ॥ हे सौम्य! यह है 'वह' पदार्थों का 'सत्यतत्त्व' जिस प्रकार सुदीप्त अग्नि से सहस्रों स्फुर्लिंग उत्पन्न होते हैं तथा वे सभी अग्नि के समान रूप वाले होते हैं, उसी प्रकार अक्षर-तत्त्व से अनेकानेक भावों का (सम्भूतियों का) उद्भव होता है तथा उसी में वे सब चले जाते हैं। This is That, the Truth of things: as from one highkindled fire thousands of differe