फिरता रहता है शहर में गैरों के साथ मुझसे तो अब ख्वाबों में भी रुबरू कहां है कोई रूठे तो मनाता है मुझ पे भी क्या कमाल कहर ढाता है आयुष सिंह पडियार SỤRẠJ MEhta