राधा- प्राण तत्व है, कृष्ण- के जीवन का! प्रकृति का भी। जब तक साथ रहे, माधुर्य की वर्षा होती, विरह दिए तो युद्ध सहे। धारा का विपरीत प्रभाव, राधा बनकर प्रेम बनता। परिस्थितियों की धारा से, बाहर निकलने का नाम ही राधा है। #पाठकपुराण की ओर से आप सभी को #राधाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं। श्री कृष्ण के जीवन का एक ऐसा पात्र है जो उनके आनंद स्वरूप और लीलाओं का साक्षी हुआ। बाल्यावस्था में विकसित होती समझ और भावनाओं का बड़ा सुंदर मनोवैज्ञानिक निरूपण किया।अठखेलियां,प्रेम,विरह और आत्मा की एकरूपता का ऐसा अनूठा संगम अन्यंत्र नहीं मिलता। ईर्ष्या से रुक्मिणी गर्म दूध राधा जी को पिलातीं हैं और पैरों में छाले श्रीकृष्ण के हो जाते हैं। मैं ही राधा मैं ही कृष्ण के सिद्धांत को स्वीकार कर मैं समस्त रसों की स्वामिनी राधेरानी को प्रणाम