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मेरी आवारगी अब कैद नही ही पायेगी रेत हूँ मैं, मु

मेरी आवारगी अब कैद नही ही पायेगी
रेत हूँ  मैं,  मुट्ठी  से   फिसल   जायगी
मैं  चट्टान  में   दबी   आवाज    नही
जो    घूंघट    में    छुप    जायगी
मैं    मचलती     वो   महक  हूँ
जो चारो फिज़ाओ में फैल जायगी #forfeminizm
मेरी आवारगी अब कैद नही ही पायेगी
रेत हूँ  मैं,  मुट्ठी  से   फिसल   जायगी
मैं  चट्टान  में   दबी   आवाज    नही
जो    घूंघट    में    छुप    जायगी
मैं    मचलती     वो   महक  हूँ
जो चारो फिज़ाओ में फैल जायगी #forfeminizm