चंद्र सावल्या उन्हात हसती। असेच अवचीत स्मरते गाणे। दु:ख वेचूनी गर्द उन्हामधुनी। आयुष्य वेचते नवेच गाणे।।१।। घरी निघाल्या सखी गोकुळी। ती सांज दाटते यमुना तीरी। कृष्ण सावळा तगमगतो वेडा। अर्थामधुनी सुचते नवेच गाणे।।२।। हिरवे हिरवे रान फुलतेे इथले। पानामधूनी भिरभिरते गाणे। पाऊल वेडे खचते निरंतर का। मन हरवी स्वप्नानी नवेच गाणे।।३।। डॉ. राजू श्रीरामे भ्रमणध्वनी - 9049940221 सावल्या