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रहूं पास तुम्हारे! कि यही फ़रमाइश है मेरी। तुम्हें

रहूं पास तुम्हारे! कि यही फ़रमाइश है मेरी।
तुम्हें निहारता रहूं कि यही ख़्वाहिश है मेरी।।

और तुमको सुकून कहूं तो ग़लत नहीं होगा।
फ़क़त तुम्हें चाहने की यही पैमाईश है मेरी।।

बस हमदर्द नहीं हमसफर भी बनना है मुझे।
तू थाम ले मेरा हाथ, यही गुज़ारिश है मेरी।।

फ़क़त तुम्हें चाहने की यही पैमाईश है मेरी।।
तुम्हें निहारता रहूं कि यही ख़्वाहिश है मेरी।।

©Shivank Shyamal #woaurmain 
रहूं पास तुम्हारे! कि यही फ़रमाइश है मेरी।
तुम्हें निहारता रहूं कि यही ख़्वाहिश है मेरी।।

और तुमको सुकून कहूं तो ग़लत नहीं होगा।
फ़क़त तुम्हें चाहने की यही पैमाईश है मेरी।।

बस हमदर्द नहीं हमसफर भी बनना है मुझे।
रहूं पास तुम्हारे! कि यही फ़रमाइश है मेरी।
तुम्हें निहारता रहूं कि यही ख़्वाहिश है मेरी।।

और तुमको सुकून कहूं तो ग़लत नहीं होगा।
फ़क़त तुम्हें चाहने की यही पैमाईश है मेरी।।

बस हमदर्द नहीं हमसफर भी बनना है मुझे।
तू थाम ले मेरा हाथ, यही गुज़ारिश है मेरी।।

फ़क़त तुम्हें चाहने की यही पैमाईश है मेरी।।
तुम्हें निहारता रहूं कि यही ख़्वाहिश है मेरी।।

©Shivank Shyamal #woaurmain 
रहूं पास तुम्हारे! कि यही फ़रमाइश है मेरी।
तुम्हें निहारता रहूं कि यही ख़्वाहिश है मेरी।।

और तुमको सुकून कहूं तो ग़लत नहीं होगा।
फ़क़त तुम्हें चाहने की यही पैमाईश है मेरी।।

बस हमदर्द नहीं हमसफर भी बनना है मुझे।