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तेरे क़दमों के निशाँ आज भी, उभर आते हैं मेरे घर



तेरे क़दमों के निशाँ आज भी, 
उभर आते हैं मेरे घर के आँगन में,
तू तो चली गई, 
लेकिन पीछे छोड़ गई तेरे निशाँ। 

मुलाकात तो हुई हमारी भी, 
लेकिन कुछ वक़्त के लिए ही, 
पता नहीं विधाता ने आधी लकीरे खींची थी के, 
मिल के भी हम एक ना हो सकें। 

जब भी आँगन में महसूस करता हूंँ, 
तेरे कदमों के निशाँ तब, 
समुंदर की लहरों की तरह, 
छा जाती है तेरी याद इस दिल में। 

तेरे क़दमों के बिना, 
आज सुना पड़ा है मेरा आँगन,
एक बार फिर से आकर,
दीया जलाकर पावन कर जा मेरा आँगन। 

-Nitesh Prajapati 

 ♥️ Challenge-977 #collabwithकोराकाग़ज़

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊

♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा।

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।


तेरे क़दमों के निशाँ आज भी, 
उभर आते हैं मेरे घर के आँगन में,
तू तो चली गई, 
लेकिन पीछे छोड़ गई तेरे निशाँ। 

मुलाकात तो हुई हमारी भी, 
लेकिन कुछ वक़्त के लिए ही, 
पता नहीं विधाता ने आधी लकीरे खींची थी के, 
मिल के भी हम एक ना हो सकें। 

जब भी आँगन में महसूस करता हूंँ, 
तेरे कदमों के निशाँ तब, 
समुंदर की लहरों की तरह, 
छा जाती है तेरी याद इस दिल में। 

तेरे क़दमों के बिना, 
आज सुना पड़ा है मेरा आँगन,
एक बार फिर से आकर,
दीया जलाकर पावन कर जा मेरा आँगन। 

-Nitesh Prajapati 

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