मार्ग पथिक का कर रोशन, भाषा की सरलता पर वो ज़ोर, जो रूप तुमने देखा जीवन का, वो मुझमें दिखता रहता चहुँओर। आशाऍं, आशाऍं बनती कैसे, पीड़ा को काटती पीड़ा कैसे, कैसे विज्ञान से बने जीवन, कैसे जीवन में नामे-जमा कठोर। गणनाऍं बनी संगणना कब, एक बक्सा बना शिक्षक कब? कला विषय सी चमकी कब, इन प्रश्नों का, जब मचा शोर, एक संसार लिए अपने दिल में, किताबें कुछ अपनी पसंद की, कक्षा क्या पूरा जीवन बनाते, वो समझ-ओ-ज्ञान से सराबोर। मुझे एक-एक मात्रा और बड़ी बड़ी बातें सिखाने वाले समस्त yq जनों को शिक्षक दिवस की शुभकामनाऍं बहुत बहुत धन्यवाद, हिंदी समझाने हेतु मनोज sir Suraj Kothari sir @अनाम Shabdveni didi संदीप डबराल 'सैंडी'(शून्य) जी