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मैं बिल्कुल रेत की तरह हूं औरों की तरह ढलना नहीं च

मैं बिल्कुल रेत की तरह हूं
औरों की तरह ढलना नहीं चाहता,

दिल पे लेकर बोझ यादों का
मैं सर झुका के चलना नहीं चाहता,

तू अपनी यादें वापिस ले जा मुझसे
तुझे याद ना करूं ऐसा कोई पल नहीं जाता,

और अब दूर ही रहना मेरे जहन से तुम
मैं हर रोज एक ही आग में जलना नहीं चाहता।

©Vikram Singh Rana
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