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वर्तमान में रह कर भी, अतीत में जीते हैं, जैसे अँध

 वर्तमान में रह कर भी,
अतीत में जीते हैं,
जैसे अँधेरे कमरे में रहकर,
अपने साये को खोते हैं..!
खुशियों में भी ग़म आ जाये,
 ऐसे में यूँ रोते हैं,
धीरे धीरे तारीखों में,
व्यतीत होते रहते हैं..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #GuzartiZindagi #vartmaan