उसकी नाप का कपड़ा ले कर एक सूरज नया सिलते हैं चल आज सहर उसके आँगन में फिर से धूप खिलते हैं थोड़े थोड़े नीले पीले धागे उम्मीद के बांधेंगे जो उसके आँगन में रह जाए इन्द्रधनुष वो साधेंगे तारों से भी चमचम ले कर उसमें आज हिलाते हैं चल आज सहर उसके आँगन में फिर से धूप खिलते हैं गुड़हल के फूलों से लीप कर भोर दीवारें करते हैं तुलसी की मुस्कान मिला कर ख़ुश्बू उसमें भरते हैं वो फ़ाग के गीत सुहाने फिर से याद दिलाते हैं चल आज सहर उसके आँगन में फिर से धूप खिलते हैं एक गुलदान भी लाते हैं जिसमें चंदा राह जाए और चाँदनी ऐसी चमके हर रात अंधेरा बह जाए और आईने में अब फिर से नूर से उसे मिलते हैं चल आज सहर उसके आँगन में फिर से धूप खिलते हैं ©Mo k sh K an ~चल आज सहर उसके आँगन में @ #mokshkan #poet #poem #Nojoto #moonlitpoems #hope #bright