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मैं- विरह की आग में जलती एक बाती हूँ अश्रु रूपी सा

मैं-
विरह की आग में जलती एक बाती हूँ
अश्रु रूपी सागर में बहती एक नाव हूँ
आसमान से नीचे गिरती एक पतंग हूँ
हरे पेड़ो से उजड़ती एक डंगाल हूँ
दरारों की तरह कराहती एक बंजर जमीन हूँ

( पूरी कविता caption में पढ़ें)
     मैं-
विरह की आग में जलती एक बाती हूँ
अश्रु रूपी सागर में बहती एक नाव हूँ
आसमान से नीचे गिरती एक पतंग हूँ
हरे पेड़ो से उजड़ती एक डंगाल हूँ
दरारों की तरह कराहती एक बंजर जमीन हूँ
मैं केवल विवशता का पर्याय नहीं,
विषाक्त कृत्यों का अर्धपूरित, अक्षम्य परिणाम हूँ..
मैं-
विरह की आग में जलती एक बाती हूँ
अश्रु रूपी सागर में बहती एक नाव हूँ
आसमान से नीचे गिरती एक पतंग हूँ
हरे पेड़ो से उजड़ती एक डंगाल हूँ
दरारों की तरह कराहती एक बंजर जमीन हूँ

( पूरी कविता caption में पढ़ें)
     मैं-
विरह की आग में जलती एक बाती हूँ
अश्रु रूपी सागर में बहती एक नाव हूँ
आसमान से नीचे गिरती एक पतंग हूँ
हरे पेड़ो से उजड़ती एक डंगाल हूँ
दरारों की तरह कराहती एक बंजर जमीन हूँ
मैं केवल विवशता का पर्याय नहीं,
विषाक्त कृत्यों का अर्धपूरित, अक्षम्य परिणाम हूँ..